Kavita Jha

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चाय की टपरी # वार्षिक प्रतियोगिता लेखनी कहानी -29-Mar-2022

चाय की टपरी
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सुबह से राधिका बहुत खुश थी, जब से उसकी सहेली मिष्टी का फोन आया और उसने मिलने की जगह फाइनल की। 
करीब ग्यारह साल बाद वो अपनी बैस्ट फ्रैंड से मिल पाएगी।

कल शाम को मंदिर से लौटते वक्त अपनी मम्मी के साथ ही वो मिष्टी के घर यानि उसके मायके गई थी।उसका घर तो वो जानती नहीं थी। भाग कर लव मैरिज करने के बाद से उसने सब से संपर्क ही खत्म कर लिया था।
जब भी राधिका मायके आती, मिष्टी का पता करने उनके घर जाती पर हर बार उसके पैरेंट्स कुछ ना कुछ बहाना करके टाल देते।पर इस बार दिल्ली अपने मायके आते वक्त ही उसने ठान लिया था कि कुछ भी हो पूरी दिल्ली छान लूंगी पर उसका पता जरूर निकाल कर रहूंगी। शाम को काली बाड़ी में आरती के समय भी काली मां से यही प्रार्थना कर रही थी कि माता रानी मिष्टी का पता बता दो।एक बार उससे मिलवा दो। मंदिर में प्रसाद भी उसी के नाम से चढ़ाया था।

 जब आंटी अंकल से मिली तो वो बहुत खुश नजर आए। प्रसाद का डिब्बा आंटी को दिया तो अंकल खुश होते हुए मिष्टी और उसकी बेटी के बारे में बताने लगे।राधिका भी तो यही जानने के लिए आई थी।उसकी मन मांगी मुराद पूरी हो गई। बातों ही बातों में उसने मिष्टी का नम्बर मांगा जो अंकल ने तुरन्त दे दिया। घर आकर जब फोन पर बात हुई तो राधिका को लगा उसका खोया खजाना उसे वापिस मिल गया है।

दोनों सहेलियां दो शरीर एक जान के समान थी।एक दूसरे को देखें बिना, मिले बिना जिनका एक दिन भी नहीं गुजरा करता था । दोनों एक दूसरे से अपनी सारी बातें शेयर किया करती वही ग्यारह साल से एक दूसरे से किसी तरह से सम्पर्क में नहीं थी।

राधिका तो हमेशा फेसबुक पर उसका नाम सर्च किया करती उसकी हर बात याद करती। कितनी मस्ती किया करती थी दोनों सहेलियां।
जब एक साथ कॉलेज से लौटती या कभी किसी सरकारी नौकरी का फॉर्म भरकर थकी लौट रही होती तो बस स्टैंड पर या सड़क किनारे चाय की टपरी पर वही खड़े हो चाय पिया करती। दोनों ही चाय की बहुत शौकिन थी, चाहे ठंड से हाथ पैर कांप रहे हो या गर्मी में पसीने से तरबतर। 
चाहे खुश हो या उदास बस एक प्याली चाय उनकी हर समस्या का समाधान होता।राधिका इस तरह लड़कों के बीच टपरी पर चाय का ऑर्डर करते वक्त शर्माती थी पर मिष्टी कहती,", अरे! मेरी राधे रानी चाय मांग रहे हैं, वोटका या विश्की  नहीं । उसे तो चाय के साथ उबला अंडा खाने में भी बड़ा मज़ा आता। 

इस तरह सड़क पर खड़े हो चाय अंडा खाने का मजा ही कुछ और है
संग में हो राधिका तो मज़ा कुछ और है..

मिष्टी गाती तो राधिका भी अपनी हंसी नहीं रोक पाती।

जब भी चाय की टपरी और सड़क किनारे अंडे उबालते रेड़ी वाले को देखती तो मिष्टी की बहुत याद आती।
अपनी पुरानी यादों को झटक फटाफट तैयार हो वो पहुंच गई काली बाड़ी जहां मिष्टी ने मिलने के लिए बताया था।
मंदिर पहुंच माता रानी को प्रणाम कर ही रही थी कि तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।चौंक कर पीछे मुड़कर देखा तो थोड़ा सहम गई , उसका मुंह दुप्पटे से ढ़का हुआ था । "अरे! राधे रानी पहचाना नहीं ", दुप्पटे को चेहरे पर से क्षण भर के लिए हटाया और फिर से चेहरा ढ़क लिया।

मिष्टी की आवाज तो वो सालों बाद भी नहीं भूली थी।वो करोड़ों लोगों के बीच उसकी आवाज पहचान सकती थी।
गले लगती हुए बोली," मिष्टी कहां थी तूं इतने साल यार! बहुत मिस किया तुझे।"

मिष्टी ने मथा टेका काली मां की मूर्ति के सामने और बोली," चल यार! किसी दूरी जगह चलते हैं यहां सब जानते हैं कोई देख लेगा तो हजारों सवाल दाग देगा।"
" अच्छा तो इसलिए बहनजी आपने अपना चेहरा छुपा रखा है।
चल तेरे घर चलते हैं वही पास पड़ेगा।"

" नहीं यार! मेरे घर नहीं। पापा मम्मी ऑफिस में होंगे और भाई भी घर पर नहीं होगा।चाबी पड़ोस वाले घर में होगी पर अभी वहां जाना ठीक नहीं रहेगा.." मिष्टी बोली तो राधिका ने कहा, " तो ठीक है मेरे ही घर चल मम्मी और भतीजे भतीजी सब तुझे खूब याद करते हैं।"

"नहीं यार! हम दोनों कहीं और चलते हैं जहां ये अड़ोसी पड़ोसी जान पहचान वाले ना हो।"
", ठीक है चल जहां तूं ले चले वहां चलते हैं।"
" यार! सॉरी अभी तुझे अपने घर तो नहीं ले जा पाऊंगी। "
"ठीक है बाबा! कहां कह रही हूं तुझे अपने घर ले जाने के लिए।"

दोनों बातें करते हुए बहुत दूर निकल गई। मिष्टी ने इधर उधर देखा और चैन की सांस ली, चलो यहां कोई जान पहचान वाला नहीं मिलेगा।
चलते चलते बहुत थक गई थी राधिका और मिष्टी दोनों सहेलियां।
"यार एक कप चाय मिल जाती।"
"हां यार चाय की बड़ी तलब हो रही है।"
तभी बड़े से पार्क के पास से गुजरते हुए एक चाय की टपरी देखी तो दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था। मिष्टी ने दो ग्लास चाय ली और दोनों ने चियर्स कर एक घूंट में गर्म चाय पी डाली। फिर चाय वाली औरत को पैसे देकर वहीं पार्क में बैठ गए।

 बातों बातों में घंटों बीत गए।ग्यारह सालों की बातें कहां  छह घंटे में खत्म होने वाली थी।पर जब शाम हो गई छह बजे तो मिष्टी को अपनी बेटी के स्कूल से लौटने की चिंता सताने लगी।उसका स्कूल सैकेंड सिफ्ट में होता था।छुट्टी शाम के छह बजे और बस साढ़े छह बजे बस स्टॉप पर आ जाती। 

"यार अभी चलना होगा वरना बिटिया नहीं देखेगी मुझे तो परेशान हो जाएगी।"

पार्क से निकलते ही फिर चाय की तलब हो उठी थी दोनों को। दोनों ने चाय पी चाय की टपरी के पास खड़े होकर और फिर अपने अपने घर पहुंचने के लिए बस स्टैंड की तरफ चल दी,उन छह घंटे की सुनहरी यादों को लिए जिसमें दोनों ने अपने ग्यारह सालों की बातें की थी। मिष्टी तो नॉन स्टॉप बोलती ही रही और राधिका उसे सुनती रही।

अब पता नहीं कब मिलना हो पाएगा, कल ही वापस रांची अपने ससुराल जाना है।पर हां वादा किया था मिष्टी ने फोन पर बात करेंगे। चाय की टपरी पर बैठी चाय बनाने वाली औरत उन दोनों सहेलियों को विदा होते देख रही थी।
समाप्त
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कविता झा 'काव्या कवि'
# लेखनी
##लेखनी वार्षिक कहानी लेखन प्रतियोगिता
२९.०३.२०२२


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2 Comments

Marium

30-Mar-2022 09:34 AM

👌👌👌

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Gunjan Kamal

29-Mar-2022 11:17 AM

बहुत ही सुन्दर कहानी लिखी आपने मैम

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